रिज़वी एस्टेट्स में 68 करोड़ की धोखाधड़ी: डिजिटल हस्ताक्षर की हैरानी
मॉर्निंग टाइम्स: मुंबई पुलिस के इकोनॉमीज़ थ्रेट्स विंग (EOW) ने आज एक बेमिसाल 68‑करोड़ रुपये की डिजिटल हस्ताक्षर धोखाधड़ी की जाँच की है, जिसमें बिल्डर अख्तर हसन रिज़ी और उनकी परिवार के बीच बहाली के लिए अधुर्निर्मित दस्तावेज़ों को जालसाजी के रूप में दिखाया गया है। केस के आधार पर, 2010 से 2017 के बीच मगरूम में दर्जनभर शेयरों की मुक्ति के दौरान डिजिटल हस्ताक्षर के दुरुपयोग ने एक बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट धोखाधड़ी का प्रक्षेपण किया है।
रिज़वी एस्टेट्स का 68‑करोड़ का केस: फोरजरी और डिजिटल धोखाधड़ी की परतें
मामले की जड़ तब शुरू हुई जब 83 वर्षीय बिल्डर अख्तर हसन रिज़ी ने अपनी पूर्व वैवाहिक साथी मेना और बेटी रेहमा पर 6,484 शेयरों की जालसाजी करके 68.1 करोड़ रुपये के मूल्य पर कब्ज़ा करने का आरोप लगाया। अदालती दस्तावेज़ों के अनुसार, 2017 के ‘गिफ्ट डीड’ में 4,520 शेयर रेहमा को और 753 मेना को सौंपे गये। रिज़ी का दावा है कि दोनों के नाम पर डिजिटल हस्ताक्षर झूठे थे और उन्हें नकली ‘ई-स्वाक्षर’ कहा जा रहा है।
बैंकरों, ग्रेजुएट चार्टर्ड अकाउंटेंटस, और प्रशासकों के बीच जाने के बाद EOW ने पुलिस में ‘चेडिंग’, ‘फॉरजरी’, ‘ब्रीच ऑफ ट्रस्ट’, और ‘क्रिमिनल कन्सपिरेसी’ के तहत केस दर्ज किया। पुलिस के बयान अनुसार, सबूतों में तीन अलग अलग डिजिटल सिग्नैचर के कलेक्शन के फाइलिंग और तीन गवाहों की गवाही शामिल है। डिजिटल लग्जरी के तौर पर वित्त और कर प्रॉफाइल पर भी गलत रिपोर्टिंग की पुष्टि हुई है।”
डिजिटल हस्ताक्षर आधारित धोखाधड़ी के कानूनी आयाम और नियामक चुनौतियाँ
भारत सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत डिजिटल हस्ताक्षर को वैध कानूनी साक्ष्य माना जाता है। परंतु इस केस में ‘ई-हस्ताक्षर’ के लिए प्रयुक्त ‘सर्टिफिकेशन प्राधिकरण’ के नाजायज उपयोग और वैध सीरियल नंबरों की सीमाओं को दिखाया गया। जालसाजी का तरीका अंतर्गत ‘ई डाक्यूमेंट बाइंडिंग’ के माध्यम से चुपचाप वैध रूप से डिजिटल काउंटरपार्स बनाए गए। इस नवाचारगत तकनीक को रिपोर्टिंग और पब्लिक रिकार्ड के बीच एक खामोश दरार बनाता है।
विकास पथ में अब यह पूछे जाने वाला सवाल है – क्या डिजिटल सिग्नैचर के कानून के तहत अनाधिकृत प्रयोग को रोकने के लिए किसी नया प्रावधान जोड़ने की आवश्यकता है? इस पर कुछ लॉ प्रोफेसरों ने ‘स्ट्रिक्टर डिजिटल सिग्नैचर ऑडिट’ के लिए पुकार उठाई है।
डिजिटल हस्ताक्षर धोखाधड़ी के HR समाधान: विश्वास की पुनर्स्थापना के लिए रणनीतियाँ
कर्मचारी सहभागिता और प्रतिभा प्रबंधन के क्षेत्र में डिजिटल हस्ताक्षर धोखाधड़ी को रोकने के लिए HR विभागों को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- जांच-परख प्रणाली के लगातार अपडेट: हर हस्ताक्षर को सर्टिफाइस्ड प्राधिकरण से सत्यापित करना और उसी समय ‘डबल प्रमाणीकरण’ सक्रिय करना।
- नियमित ऑडिट और लॉ लॉगिंग: सभी डिजिटल दस्तावेजों के डेटा ट्रेल को निरंतर चेक करना और समय-समय पर टेक्नोलॉजिकल चेकपॉइंट स्थापित करना।
- सुरक्षित डिजिटल सिग्नैचर इंफ्रास्ट्रक्चर: ‘HSM (हैडवेर सिक्योरिटी मॉड्यूल)’ के सहयोग से निजी कीज़ को भौतिक रूप से सुरक्षा देना।
- अनुपालन धारणा प्रशिक्षण: कर्मचारियों को डिजिटल क्रेडेंशियल फैसिलिटी की अटें डेप्लॉयमेंट और संभावित धोखाधड़ी के बारे में वर्कशॉप द्वारा शिक्षित करना।
- संबंधित प्राधिकारी से सूचना साझा करना: ISRO, RBI, या आत्मनिर्धारित ‘डिजिटल इग्लीएंट फाइल’ के रूप में सार्वजनिक नीति साक्ष्य तैनात करना।
इन प्रथाओं के लागू होने के बाद कंपनियाँ केवल धोखाधड़ी से बचा ही नहीं थीं पर ‘डिजिटल सिग्नैचर धोखाधड़ी के HR समाधान’ पर माध्यमिक स्तर पर भी भरोसा जगाती हैं। इस तरह हर प्रबंधकीय या बोट्यूड निर्णय पर डिजिटल कहानियों को पुख्ता बनाने के लिए मदद मिलती है।
अंतरराष्ट्रीय छात्रों और वैश्विक भर्ती के लिए क्या मायने रखता है?
आज जब हर देश से इंटर्न, स्टूडेंट वर्कर और विदेशी विशेषज्ञ भारत आकर काम करते हैं, तो डिजिटल हस्ताक्षर के द्वारा समय बचती है और प्रक्रियाएं सरल हो जाती हैं। पर, यदि यह तकनीक जालसाजी या डिजिटल धोखाधड़ी के लिए खुली है तो यह पूरी भर्ती प्रक्रिया पर भी असर डाल सकती है।
इंटरनेशनल छात्रवृत्ति और स्कीम में, कई विश्वविद्यालय और नीति निर्माता डिजिटल सिग्नेचर के साथ इमिग्रेशन वर्क्स, वर्क परमिट और जॉब अप्लिकेशन मैनेज कर रहे हैं। अगर डिजिटल हस्ताक्षर प्लैटफार्म में दोष प्रकट होता है तो वो इंटर्न या छात्र को अनावश्यक रिपोर्टिंग और देरी का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा, डिजिटल प्रमाणीकरण में कॉम्पैटिबिलिटी फेल होने पर अंतरराष्ट्रीय पंजीकरण प्रक्रियाओं में भी बाधा उत्पन्न हो सकती है।
इस संदर्भ में यह ज़रूरी है कि:
- विश्वविद्यालयों और एचआर टीमों को अपने डिजिटल सिग्नेचर पॉलिसी को मजबूत करना चाहिए: बंद माहौल में डिजिटल कोड के लिए विशेष ऑपेनिंग और क्लोजिंग टाइम्स पर प्रतिबंध।
- सटीक प्लैटफार्म चैकपॉइंट्स से डेटा ट्रांसफर की पुष्टि करनी चाहिए: ट्रांसमिटेड प्रूफ में जालसाजी के किसी निशान को देखने के लिए पूर्व ताम्परिंग के सर्वेक्षण कार्यक्रम।
- अंतरराष्ट्रीय छात्र नेटवर्क को पैरामीटर या गाइडलाइन शामिल करनी चाहिए: ई-हस्ताक्षर के टूल्स के लिए प्रस्थापित सिस्टीम लिस्ट और रिव्यू मेथडोज़ के साथ स्टैंडर्डाइज्ड प्रोसस।
- सरकार व संस्थानी को Authentication Authority के साथ सहयोग करना चाहिए: इसके अंतर्गत आईपी वेरिफिकेशन और टोनरी मेसेज में एनालिसिस।
ये कदम कर्मचारियों और परदेशी मोड्यूल को सुरक्षित कर सकेंगे और साथ ही उनकी भर्ती प्रक्रियाँ की विश्वसनीयता बनाए रखेंगे। डिजिटल हस्ताक्षर धोखाधड़ी के घटकों को निपटाने के लिए यह समांतर स्तर पर मानव शक्ति और तकनीक के सहायक चॅनलों को मजबूत बनता है।
समापन व सुझाव
रिज़वी एस्टेट्स के इस केस ने दिखाया है कि डिजिटल हस्ताक्षर आधुनिक व्यापार में अवसर और जोखिम दोनों लेकर आते हैं। जहाँ डिजिटल सिग्नेचर ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस को तेज किया, उसी समय, इसकी जालसाजी ने निवेशकों के लिए बड़े दस्तावेज़ों के रूप में एक खुला सा फिसलन पैदा किया। एचआर और आईटी विभागों को इस घटना से सीख लेकर बीमा, ऑडिट और सत्यापित प्रक्रियाओं को एक साथ लाना चाहिए। प्रभावी डिजिटल सिग्नैचर नीति, ऑडिट-सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कदम – ये सभी ‘डिजिटल हस्ताक्षर धोखाधड़ी के HR समाधान’ को सुदृढ़ बनाते हैं।
भविष्य में यदि आयुशाकाली नीतियाँ और नियम लागू करते हैं, तो यह संभव है कि जालसाजी से बचने के लिए प्रत्येक कॉर्पोरेट संगठन के पास एक सशक्त डिजिटल सिग्नेचर इंफ़्रास्ट्रक्चर ट्रस्टवॉल बन जाए। इस तरह रियल एस्टेट से लेकर एचआर परिदृश्य तक, सब एकजुट होकर एक विश्वसनीय, सत्यापित और सुरक्षित डिजिटल व्यवस्था स्थापित करें।
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