महाराष्ट्र मंत्री लोढ़ा ने मुंबई में कबूतर पालन के लिए पहला अनुकूल वातावरण तैयार किया

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महाराष्ट्र मंत्री लोढ़ा ने हाल ही में मुंबई के सविनी जैन मंदिर में एक नए कबूतर पालन (कबूतर खान) का अनावरण किया, जिससे शहर के शहरी कार्यबल पर इसके संभावित प्रभावों पर चर्चा तेज हो गई है। यह पहल नयी शहरी नीतियों और नागरिक कल्याण के बीच एक समन्वय का उदाहरण है।

पहला कदम: कबूतर पालन का अनावरण

गुरुवार को, लीडर मैनी प्रभाट लोढ़ा ने सवंती जैन मंदिर, संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर एक नवीन कबूतर खान (पाइयिंग एरिया) के उद्घाटन समारोह का नेतृत्व किया। रामि नाकारोत्तक के अनुसार, “हमने यह सुविधा प्रत्येक वार्ड में उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। मुंबई में कबूतर पालन संघर्षों के बाद, यह पहला सार्वजनिक रूप से मान्यता प्राप्त कबूतर खान है।”

कबूतर खान के तहत कांटे, खुरदरे परदे और पाचन के लिए विशेष खाद्य टोकरी रखी गई हैं, जिन्हें सम्पूर्ण रूप से जैन समुदाय द्वारा प्रशासित किया जा सकता है। डाउनस्ट्रीम मुद्दों में, जैसे कि “पक्षियों के गोवंशीय कचरे से होने वाली स्वास्थ्य चिंता” और “रंध्रों में पिन सेलेडके बड़’”, इस फैसले को संतुलित करने के लिए एक वैधानिक ढांचा तैयार किया गया है।

शहरी कार्यबल पर संभावित लाभ

साक्षियों के अनुसार, कबूतर पालन से शहरी कार्यबल के लिए मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक लाभ हो सकते हैं।

  • मानसिक स्वास्थ्य में सुधार: अध्ययनों से पता चलता है कि पक्षियों के साथ संपर्क करने से तनाव कम होता है। बस एक कबूतर को देखना रोज़मर्रा के थकाऊ शहरी वातावरण में राहत दे सकता है।
  • शैक्षणिक उपयोग: हर शहरी वार्ड में एक प्रधानमन्त्री कबूतर खान होने से शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए जीवित अध्यापन के नए तरीक़े खुलेंगे। “कबूतर पालन शहरी कार्यबल” के हिस्से के रूप में, यह उपक्रम नयी पीढ़ी को उत्तरदायी पर्यावरणीय प्रबंधन के लिए प्रेरित कर सकता है।
  • आर्थिक सकल: कुछ पक्षी पालन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सही तरीके से प्रबंधित किया जाए तो कबूतर पालन कम लागत में बड़ाई और दिमागी आर्थिक लाभ भी देता है।

सारांशतः, मुंबई में कबूतर पालन शहरी कार्यबल पर हानिकारक न होने के साथ होने वाले सकारात्मक परिदृश्यों पर शोध के अनुसार, यह पहल “कानूनी रूप से सहज” और “सामुदायिक प्रयास” के माध्यम से सम्भव हुआ है।

कानूनी और सामाजिक गतिशीलताएँ

हालाँकि, कबूतर पालन का विस्तार कई वैधानिक और सार्वजनिक स्वच्छता चुनौतियों का सामना कर रहा है। 2023 में मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा प्राचीन कबूतर खान को बंद करने के बाद, इस नए पहल को “सर्दी की वादियों” में कॉन्फ़िगर किया गया।

प्राधिकारियों ने एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार की है:

  • कबूतर पालन के लिए स्थानिक मानक, जैसे कि कबूतरों को आवास, साफ़ करना, और गोपनीयता, सर्वर पर जगह तय करना।
  • प्रत्येक वार्ड में न्यूनतम एक कबूतर खान के संचालित करने के लिए नियमानुसार कानूनी समर्थन।
  • कबूतरों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण को न्यूनतम करने के लिए अनिवार्य मिश्र ध्वज और उपचार सुविधाएँ।

समाजशास्त्री ध्रुव पन्त ने टिप्पणी की, “कबूतर पालन शहरी कार्यबल के तहत एक नया ओजस्वी आयाम है, परन्तु इसे सही प्रक्रियाएँ अपनानी होंगी और सार्वजनिक सहभागिता भी ज़रूरी है।”

भविष्य की दिशा और चिंताएँ

कबूतर पालन का यह नया अध्याय भविष्य में विस्तार करने के लिए एक नई मिसाल बन सकता है। शहर के कुछ हिस्सों में, खासकर परिधि और जङगाजी इलाकों में, कुछ ऐसे मानचित्र तैयार किये गये हैं जिनमें कबूतर खान के लिए 200 प्लेटफ़ॉर्म निर्धारित किये गये हैं।”

मंत्री लोढ़ा ने कहा, “म्यूजिक को खेलके साथ जोड़कर, मैं यह परिदृश्य देख रहा हूँ कि कबूतर पालन शहरी कार्यबल में एक बेहतर कार्यस्थल संस्कृति और मानसिक स्वास्थ्य रोकथाम के लिए एक साधन बन सकता है। नोटिस किए बिना, मुझे आशा है कि यह पहल शहरी योजना के एक नवीन पहलू के रूप में दुनिया में गैलीन के साथ भी प्रतिस्पर्धा करेगी।”

इस नई पहल को व्यापक रूप से सक्षम करने के लिए, स्थानीय सरकार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों और कौशल विकास कार्यक्रमों का समावेश आवश्यक है। शहरी कार्यबल के लिए अद्वितीय शैक्षिक पाठ्यक्रम, व्यवहारिक प्रशिक्षण, और स्वास्थ्य एवं सुरक्षा-केंद्रित वीडियो ट्यूटोरियल जैसे संसाधन तैयार किये जाने चाहिए।

अनुपस्थित विषयों में से एक यह है कि कबूतर पालन कौन से स्थानों में और किस प्रकार के मध्यम आय वाले और मजदूरी वर्ग में साक्षरता और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दे सकता है। यदि सही ढंग से पेश किया जाए, तो यह स्थानीय कृषि व शहरी नियोजन के बीच सहयोग के नए द्वार खोलेगा।

निष्कर्ष

मुंबई में सविनि जैन मंदिर के पिछवाड़े में अनावरण किए गये नवीन कबूतर खान के साथ, शहर ने शहरी कार्यबल के लिए एक नया क्षेत्र खुला है। यह पहल, जबकि माँडस केवल सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के पहलू को ही नहीं, बल्कि आर्थिक और वैधानिक पहलुओं को भी पेश करती है। यदि सरकारी योजना और जैन समुदाय के प्रयास को एक मिले-जुले ढांचे में समूहित किया जाये, तो आगे आने वाले वर्षों में यह पहल ना सिर्फ़ शहरी योजना में एक आयाम सुझा सकती है, परंतु 2025 तक मुम्बई के नागरिकों को बेहतर शहरी अनुभव भी प्रदान कर सकती है।

नमस्कार! मैं प्रवीन कुमार, एक पत्रकार और लेखक हूं। मैं राजनीति, मनोरंजन, खेल और तमाम बड़ी खबरों पर लिखता हूं। मेरी कोशिश रहती है कि आपको सही और सटीक जानकारी सरल भाषा में मिले।

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