- चिराग पासवान का बड़ा बयान: जात-धर्म की राजनीति नहीं करेंगे
- बिहार चुनाव पर फोकस: 225+ सीटों का दावा
- वक्फ बिल और तीन तलाक: सुधारों का समर्थन
- अल्पसंख्यकों के दबे-कुचले लोगों की आवाज बनने की इच्छा
- नमाज़ और औरंगज़ेब विवाद पर सीधी बात
- धर्म निजी मामला, घर तक सीमित रखें
- मंदिर-मस्जिद विवाद पर भागवत के विचारों से सहमति
चिराग पासवान का बड़ा बयान: जात-धर्म की राजनीति नहीं करेंगे
टीवी9 नेटवर्क के बड़े कार्यक्रम ‘व्हाट इंडिया थिंक्स टुडे’ में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने अपनी बात खुलकर रखी। उन्होंने साफ कहा कि वह जात-पात या धर्म के आधार पर राजनीति करने में विश्वास नहीं रखते। उनका कहना था कि ऐसी राजनीति देश के लिए ठीक नहीं है और वह इसका समर्थन कभी नहीं करेंगे।
चिराग ने जोर देकर कहा कि उनका फोकस सिर्फ और सिर्फ विकास के मुद्दों पर रहेगा। वह चाहते हैं कि राजनीति में विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर बात हो, न कि लोगों को जात और धर्म के नाम पर बांटा जाए। उन्होंने कहा कि वह हर किसी के नेता बनना चाहते हैं, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो।
बिहार चुनाव पर फोकस: 225+ सीटों का दावा
चिराग पासवान ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि अब वह बिहार की राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहना चाहते हैं। आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर वह काफी उत्साहित हैं और पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
उन्होंने भरोसा जताया कि बिहार में एनडीए गठबंधन, जिसमें पांच पार्टियां शामिल हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगा। चिराग का मानना है कि एनडीए गठबंधन इस बार शानदार प्रदर्शन करेगा। उन्होंने दावा किया कि बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से एनडीए कम से कम 225 सीटें जीतेगा। यह दिखाता है कि उन्हें अपनी और गठबंधन की ताकत पर कितना भरोसा है।
वक्फ बिल और तीन तलाक: सुधारों का समर्थन
कार्यक्रम में जब चिराग पासवान से वक्फ बिल पर उनकी राय पूछी गई, तो उन्होंने खुलकर जवाब दिया। उन्होंने बताया कि मुस्लिम समाज के अंदर भी कई लोग ऐसे थे जो इस बिल में सुधार चाहते थे और उन्होंने सरकार के इस कदम का समर्थन किया। उनकी भी इच्छा थी कि यह बिल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास जाए।
चिराग ने कहा कि जब इस पर चर्चा हुई तो यह साफ हो गया कि बहुत से मुसलमानों को इन बदलावों से कोई दिक्कत नहीं थी। उन्होंने तीन तलाक के मुद्दे का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि तीन तलाक पर भी समाज में गलतफहमी फैलाने की कोशिश की गई थी, लेकिन सच्चाई कुछ और थी। उनका मानना है कि ऐसे सुधार समाज के भले के लिए जरूरी हैं।
अल्पसंख्यकों के दबे-कुचले लोगों की आवाज बनने की इच्छा
चिराग पासवान ने यह भी कहा कि वह सिर्फ दलितों या पिछड़ों की ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों के उन लोगों की भी आवाज बनना चाहते हैं जो पीछे रह गए हैं या जिनकी बात कोई नहीं सुनता। उनका लक्ष्य समाज के हर वर्ग के कमजोर और उपेक्षित लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना है।
उन्होंने कहा कि विकास का लाभ समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए, चाहे वह किसी भी समुदाय का हो। वह चाहते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी देश की प्रगति में बराबर के भागीदार बनें और उन्हें किसी तरह का डर या असुरक्षा महसूस न हो।
नमाज़ और औरंगज़ेब विवाद पर सीधी बात
जब चिराग पासवान से सड़कों पर नमाज़ पढ़ने और औरंगज़ेब को लेकर चल रहे राजनीतिक विवादों पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने इसे फिजूल की बहस बताया। उन्होंने कहा कि इस बात पर चर्चा करना कि सड़कों या छतों पर नमाज़ होनी चाहिए या नहीं, यह समय की बर्बादी है।
उनका मानना था कि हमें इन मुद्दों में उलझने के बजाय देश के विकास और तरक्की पर ध्यान देना चाहिए। असली मुद्दे गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य हैं, जिन पर काम करने की जरूरत है। धार्मिक मुद्दों को बेवजह तूल देना ठीक नहीं है।
धर्म निजी मामला, घर तक सीमित रखें
चिराग पासवान ने जोर देकर कहा कि धर्म हर व्यक्ति की निजी आस्था का विषय है। इसे राजनीति या सार्वजनिक बहस का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जात-पात और धर्म की बातें पूरी तरह से बेकार हैं और समाज को बांटने का काम करती हैं।
उनकी राय में, धर्म को लोगों के घरों की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहिए। इसे सड़कों पर या राजनीति में लाने से समाज में तनाव और टकराव बढ़ता है। हमें एक-दूसरे के धर्म का सम्मान करना चाहिए और मिलजुलकर रहना चाहिए।
मंदिर-मस्जिद विवाद पर भागवत के विचारों से सहमति
मंदिर और मस्जिद से जुड़े विवादों पर भी चिराग पासवान ने अपनी राय रखी। इस मामले में उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बजाय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत के विचारों से अधिक सहमति जताई।
मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की ज़रूरत नहीं है और हमें मिलजुलकर समाधान निकालना चाहिए। चिराग का भी मानना है कि ऐसे विवादों को शांति और बातचीत से सुलझाना चाहिए, न कि टकराव बढ़ाकर। उनका संदेश साफ था – विकास पहले, बाकी सब बाद में।

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